क्या रोज 45 मिनट वॉक करने से सेक्सुअल प्रॉब्लम खत्म हो सकती है? अगर हां, तो क्या ऐसे और उपाय भी हैं? देश के जाने-माने सेक्सॉलजिस्ट प्रकाश कोठारी का कहना है कि सेक्स समस्याओं का बगैर दवा के भी इलाज हो सकता है। इसके लिए क्या करना होगा? क्या सभी लोग ये कर सकते हैं?
इस आलेख का दूसरा हिस्सा यहां सुनें या पढ़ें : सेक्स महिलाओं का हक, पर मर्दों को कैसे समझाएं
सेक्स समस्याओं का बिना दवा भी इलाज हो सकता है। देश के जाने-माने सेक्सॉलजिस्ट डॉ. प्रकाश कोठारी का कहना है कि तीन चीजें करने से सेक्स में कोई समस्या नहीं आएगी। पहले तो उन्होंने रोज 45 मिनट लगातार चलने की सलाह दी। इससे खून की नलियां खुली रहती हैं। शरीर के हर हिस्से को बेहतर ऑक्सिजन मिलती है।
वज्रासन में जितनी देर बैठ सकें, उतना अच्छा है। मानसिक शांति के लिए शवासन और भ्रामरी प्राणायाम भी रोजाना करें। सेक्स के लिए प्राणायाम भी बहुत फायदेमंद है। उन्होंने बताया कि इंसान के शरीर में ज्यादातर बीमारियां वात की वजह से होती हैं। प्राणायाम से वात से होने वाली बीमारियों को कम किया जा सकता है।
मूलबंध का लाभ
एक और बड़ी अच्छी क्रिया है। लंबी सांस अंदर लें। रोकें। साथ ही गुदा द्वार को ऊपर की तरफ सिकोड़ें। इसे योग में मूलबंध कहते हैं। अब आसानी से जितना वक्त हो सके, उतना वक्त सांस रोककर रखें। फिर आहिस्ता-आहिस्ता सांस छोड़ें और साथ ही साथ मूलबंध छोड़ दें। अगर आपने 20 की गिनती तक सांस रोकी हो, तो उसके बाद 20 की गिनती तक ही आराम करें।
इस दौरान सामान्य रफ्तार से सांस लें और छोड़ें। इस पूरी क्रिया को 10 बार सुबह और 10 बार शाम को करें। इसे आप वज्रासन में करें तो बेहतर है। जिन्हें क्लाइमैक्स पर जल्दी पहुंच जाने की समस्या हो, वे इसका अभ्यास नियमित रूप से करेंगे तो 6 महीने-साल में परफॉर्मेंस काफी हद तक सुधर जाएगी। इससे पेशाब पर भी नियंत्रण आ जाता है। पुरुषों-महिलाओं, दोनों के लिए यह उपयोगी है।
डॉ. कोठारी ने खानपान को भी फायदेमंद बताया। उन्होंने कहा कि रोजाना रात को एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और स्वाद मुताबिक मिश्री डालकर पिएं। यह बेहतरीन सेक्स टॉनिक है। जो चीजें पुरुष हॉर्मोन टेस्टॉस्टेरोन में बढ़ोतरी करती हैं, उन चीजों को अपने खाने में शामिल करें। उड़द दाल के लड्डू भी टेस्टॉस्टेरोन बढ़ाने में काफी फायदेमंद हैं। ये गाय के घी और मिश्री से बनते हैं।
ठंड में अगर इसे 35 से 40 साल के ऊपर का आदमी ले तो उसे जरूर फायदा होगा। हफ्ते में दो बार एक कटोरी साबुत काली उड़द की दाल गाय के घी में लहसुन-हींग का छौंक लगाकर खाएं। इससे वीर्य (सीमन) का गाढ़ापन और मात्रा भी बढ़ जाएगी। वैसे सचाई यही है कि वीर्य पतला होने से, पीला होने से या कम होने से सहवास की क्रिया पर कोई असर नहीं पड़ता।
आयुर्वेद में कई खूबियां
क्या गाय की नस्ल से भी घी की क्वॉलिटी पर फर्क पड़ता है? जैसे अमेरिकन जर्सी गाय, देसी गिर और साहिवाल गाय? डॉ. कोठारी ने बताया कि मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। हालांकि, अगर घी शास्त्रों में बताए तरीके से बने तो बेहतर है। जैसे कि दूध से दही, दही से छाछ, छाछ से मक्खन और मक्खन से घी। क्रीम के जरिये निकाले गए घी से फायदा तो होता है, पर कम।
कई आदमियों में वीर्य की कमी होती है। गाय के दूध या घी के सेवन से वीर्य जल्दी बनता है। गाय का घी रसायन है। जो जवानी बरकरार रखे और बुढ़ापे को दूर रखे, उसे रसायन कहते हैं। आंवला भी रसायन है, लेकिन उसका सेवन सिर्फ सुबह करना चाहिए। जूस या फिर कच्चा या किसी भी रूप में आंवले के सेवन के बाद अगले आधे घंटे तक कुछ नहीं खाना चाहिए। यह वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को संतुलित करता है।
क्या सेक्स संबंधी समस्याओं के इलाज में आयुर्वेद की कुछ सीमाएं भी हैं? इस पर डॉ. कोठारी ने कहा कि आयुर्वेद में वायग्रा जैसी तुरंत फायदा देने वाली दवा तो अभी तक नहीं है, लेकिन लंबे समय तक लेने के लिए आयुर्वेदिक दवाएं सुरक्षित और उम्दा हैं। इसके लिए आयुर्वेद के सही जानकार से सलाह लें। आयुर्वेद की दवा जब भी लें तो देख लें कि उसकी निर्माण अवधि छह महीने से ज्यादा की न हो।
अगर किसी तरह का तेल हो तो वह दो साल से ज्यादा पुराना न हो। आयुर्वेदिक दवाएं रखने के लिए सिर्फ मिट्टी या कांच के बर्तन का ही इस्तेमाल होना चाहिए। जड़ी-बूटियों के ऑर्गेनिक तरीके से उगाया गया हो यानी रासायनिक खादों और कीटनाशकों का इस्तेमाल न किया गया हो।
सेक्स समस्याओं का बिना दवा भी इलाज हो सकता है। देश के जाने-माने सेक्सॉलजिस्ट डॉ. प्रकाश कोठारी का कहना है कि तीन चीजें करने से सेक्स में कोई समस्या नहीं आएगी। पहले तो उन्होंने रोज 45 मिनट लगातार चलने की सलाह दी। इससे खून की नलियां खुली रहती हैं। शरीर के हर हिस्से को बेहतर ऑक्सिजन मिलती है।
वज्रासन में जितनी देर बैठ सकें, उतना अच्छा है। मानसिक शांति के लिए शवासन और भ्रामरी प्राणायाम भी रोजाना करें। सेक्स के लिए प्राणायाम भी बहुत फायदेमंद है। उन्होंने बताया कि इंसान के शरीर में ज्यादातर बीमारियां वात की वजह से होती हैं। प्राणायाम से वात से होने वाली बीमारियों को कम किया जा सकता है।
मूलबंध का लाभ
एक और बड़ी अच्छी क्रिया है। लंबी सांस अंदर लें। रोकें। साथ ही गुदा द्वार को ऊपर की तरफ सिकोड़ें। इसे योग में मूलबंध कहते हैं। अब आसानी से जितना वक्त हो सके, उतना वक्त सांस रोककर रखें। फिर आहिस्ता-आहिस्ता सांस छोड़ें और साथ ही साथ मूलबंध छोड़ दें। अगर आपने 20 की गिनती तक सांस रोकी हो, तो उसके बाद 20 की गिनती तक ही आराम करें।
इस दौरान सामान्य रफ्तार से सांस लें और छोड़ें। इस पूरी क्रिया को 10 बार सुबह और 10 बार शाम को करें। इसे आप वज्रासन में करें तो बेहतर है। जिन्हें क्लाइमैक्स पर जल्दी पहुंच जाने की समस्या हो, वे इसका अभ्यास नियमित रूप से करेंगे तो 6 महीने-साल में परफॉर्मेंस काफी हद तक सुधर जाएगी। इससे पेशाब पर भी नियंत्रण आ जाता है। पुरुषों-महिलाओं, दोनों के लिए यह उपयोगी है।
डॉ. कोठारी ने खानपान को भी फायदेमंद बताया। उन्होंने कहा कि रोजाना रात को एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और स्वाद मुताबिक मिश्री डालकर पिएं। यह बेहतरीन सेक्स टॉनिक है। जो चीजें पुरुष हॉर्मोन टेस्टॉस्टेरोन में बढ़ोतरी करती हैं, उन चीजों को अपने खाने में शामिल करें। उड़द दाल के लड्डू भी टेस्टॉस्टेरोन बढ़ाने में काफी फायदेमंद हैं। ये गाय के घी और मिश्री से बनते हैं।
ठंड में अगर इसे 35 से 40 साल के ऊपर का आदमी ले तो उसे जरूर फायदा होगा। हफ्ते में दो बार एक कटोरी साबुत काली उड़द की दाल गाय के घी में लहसुन-हींग का छौंक लगाकर खाएं। इससे वीर्य (सीमन) का गाढ़ापन और मात्रा भी बढ़ जाएगी। वैसे सचाई यही है कि वीर्य पतला होने से, पीला होने से या कम होने से सहवास की क्रिया पर कोई असर नहीं पड़ता।
आयुर्वेद में कई खूबियां
क्या गाय की नस्ल से भी घी की क्वॉलिटी पर फर्क पड़ता है? जैसे अमेरिकन जर्सी गाय, देसी गिर और साहिवाल गाय? डॉ. कोठारी ने बताया कि मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। हालांकि, अगर घी शास्त्रों में बताए तरीके से बने तो बेहतर है। जैसे कि दूध से दही, दही से छाछ, छाछ से मक्खन और मक्खन से घी। क्रीम के जरिये निकाले गए घी से फायदा तो होता है, पर कम।
कई आदमियों में वीर्य की कमी होती है। गाय के दूध या घी के सेवन से वीर्य जल्दी बनता है। गाय का घी रसायन है। जो जवानी बरकरार रखे और बुढ़ापे को दूर रखे, उसे रसायन कहते हैं। आंवला भी रसायन है, लेकिन उसका सेवन सिर्फ सुबह करना चाहिए। जूस या फिर कच्चा या किसी भी रूप में आंवले के सेवन के बाद अगले आधे घंटे तक कुछ नहीं खाना चाहिए। यह वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को संतुलित करता है।
क्या सेक्स संबंधी समस्याओं के इलाज में आयुर्वेद की कुछ सीमाएं भी हैं? इस पर डॉ. कोठारी ने कहा कि आयुर्वेद में वायग्रा जैसी तुरंत फायदा देने वाली दवा तो अभी तक नहीं है, लेकिन लंबे समय तक लेने के लिए आयुर्वेदिक दवाएं सुरक्षित और उम्दा हैं। इसके लिए आयुर्वेद के सही जानकार से सलाह लें। आयुर्वेद की दवा जब भी लें तो देख लें कि उसकी निर्माण अवधि छह महीने से ज्यादा की न हो।
अगर किसी तरह का तेल हो तो वह दो साल से ज्यादा पुराना न हो। आयुर्वेदिक दवाएं रखने के लिए सिर्फ मिट्टी या कांच के बर्तन का ही इस्तेमाल होना चाहिए। जड़ी-बूटियों के ऑर्गेनिक तरीके से उगाया गया हो यानी रासायनिक खादों और कीटनाशकों का इस्तेमाल न किया गया हो।
‘अन्न ही औषधि’
क्या आपने आयुर्वेद में भी ट्रेनिंग ली है? इस पर उन्होंने कहा कि मेरे पास आयुर्वेद की कोई डिग्री नहीं है, लेकिन मुझे कई बड़े-बड़े आयुर्वेदाचार्यों से मिलने और उनसे सीखने का मौका मिला है। मैंने खुद भी इसका काफी अध्ययन किया है। इसके बावजूद मैं कोई आयुर्वेदिक औषधि नहीं बताता।
मैं तो आयुर्वेद के आधारभूत नियम अपनाने की सलाह देता हूं। आंवला, हरड़, लहसुन, मिश्री आदि के सेवन की बात कहता हूं, जिसे समझने में किसी को भी दिक्कत नहीं आती। ये चीजें हर जगह उपलब्ध भी रहती हैं। मैंने मॉडर्न मेडिकल सिस्टम के एक टॉपिक में पीएच-डी की है। बाद में मालूम पड़ा कि हम ज्यादातर लक्षणों का इलाज करते हैं, बीमारी की जड़ में नहीं जाते।
फिर मैंने आयुर्वेद पढ़ना शुरू किया और जाना कि यह तो बहुत अच्छी चीज है। यहां तक कि मैंने अपने बेटे को कहा कि तुम आयुर्वेद में जाओ। यह सच्चा विज्ञान है। आयुर्वेद ही एकमात्र विज्ञान है जिसमें कहा गया है कि अन्न ही औषधि है।
मतलब, हमारा भोजन ही दवा है। यानी पहले आप आहार से इलाज करो, फिर विहार से। अगर इससे आराम न आए तो फिर आखिर में दवा का सहारा लें। विहार मतलब कसरत, दिनचर्या वगैरह। जैसे कि खाना आप चबाकर खाएं। कितना खाते हैं, किस तरह खाते हैं, यह अहम है। पेट अग्नि की माफिक है। मतलब, आप खा रहे हैं तो हवन कर रहे हैं। उसमें बार-बार न डालें। एक बार खा लिया तो तीन-चार घंटे तक न खाएं। इससे आपका हाजमा ठीक रहेगा।
दिनचर्या के बारे में जो आयुर्वेद ने लिखा है, वह आप कहीं नहीं पाएंगे। मिसाल के तौर पर आयुर्वेद में कहा गया है कि सुबह उठने के फौरन बाद आप दो गिलास पानी पी लें। ज्यादा नहीं। लोग गुनगुना पानी पी लेते हैं, लेकिन आयुर्वेद में कहा गया है कि आप सामान्य पानी लें या मटके का पानी। इससे आपका पेट बिल्कुल साफ रहेगा।
इसके बाद आप ब्रश या दातुन करके मुंह के अंदर तिल का तेल भर डालें। इसे अंदर निगलना नहीं है। होंठ कसकर बंद करके तेल को मुंह के अंदर घुमाएं। इसे बस 5 मिनट करना है। फिर इस तेल को बाहर फेंक दें। इससे आपके दांत मजबूत रहेंगे और गला हमेशा साफ रहेगा। आवाज अच्छी रहेगी। मसूड़े स्वस्थ रहेंगे। इससे दांत की कोई बीमारी नहीं होगी।
‘प्राइवेट पार्ट की मालिश भी नीचे से ऊपर की तरफ करें’
एक चीज और, आप जब भी हाथ से मुंह धोते हैं, तो ऊपर से नीचे धोते हैं। ऐसा न करें। आप नीचे से ऊपर की ओर धोएं। इससे आपको झुर्रियां नहीं पड़ेंगी। मॉडल्स यही करती हैं। इस क्रिया में आप खून को नीचे से ऊपर की ओर ले जाते हो। आप कहीं भी मालिश करवा लो, चाहे वह स्पा हो या बड़े से बड़ा होटल।
कहीं भी आयुर्वेद के अनुसार नहीं करते। आयुर्वेद में हमेशा कहा गया है कि मालिश दिल की दिशा में होनी चाहिए। मतलब अंगुलियों से ऊपर की ओर। अपना शरीर भी तौलिए से दिल की तरफ ही पोंछना चाहिए क्योंकि खून की गति हमेशा दिल की तरफ होती है। पैर की मालिश करनी है तो वह भी ऊपर की ओर।
अगर प्राइवेट पार्ट में करनी हो तो वह हमेशा नीचे की ओर करनी चाहिए यानी जड़ से शुरू करना चाहिए। पेट सही रखना है तो खूब चबाकर खाएं। पेट के दांत नहीं हैं। आप जितना फटाफट खाएंगे, पेट को उतनी तकलीफ होगी। हाजमा बराबर नहीं होगा। और जब पेट साफ नहीं होगा तो समझ लें, कुछ भी साफ नहीं होगा।
कब्ज हर बीमारी की जड़ होती है। हमारे यहां लोग विदेशियों को फॉलो करते हैं जो बिल्कुल गलत है। खाने में मिठाई सबसे पहले खाओ। हमारे यहां गांवों में पहले लड्डू खिलाते थे, फिर खाना खिलाते थे क्योंकि उस समय पेट के सारे अवयव काफी मजबूत रहते हैं। पचाने की क्षमता काफी मजबूत रहती है। खाने के समय और उससे आधे घंटे पहले, पानी बिलकुल न पिएं। खाने के डेढ़ घंटे बाद पानी पिएं।
वीर्य और खून का कोई रिश्ता नहीं
आप जिस आयुर्वेद की इतनी बातें कर रहे हैं, वही तो ब्रह्मचर्य अपनाने को भी कहता है? इस पर डॉ. कोठारी ने कहा, ‘अपने यहां सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि लोगों को जो बता दिया जाता है, उसको फॉलो करने लगते हैं। इसकी वजह यह है कि हम लोग काफी भावुक हैं। जिन महापुरुषों की इज्जत हम कुछ खास कारणों से करते हैं, उनकी कही हर बात हम सही मानने लगते हैं। जैसे कि महात्मा गांधी और मोरारजी देसाई ने भी ब्रह्मचर्य अपनाने की बात कही है।
उन्होंने अपने अनुभव से यह बोल दिया, लेकिन वे सेक्सॉलजिस्ट नहीं थे। इसलिए लोगों को इसे नहीं मानना चाहिए।’ उन्होंने किस आधार पर लोगों को यह राय दी। ब्रह्मचर्य का मतलब जो आम आदमी निकालता है, वह यह कि सेक्स नहीं करना, सेक्सुअल गतिविधि से दूर रहना और वीर्य न निकलने देना। लोग ऐसा मानते हैं कि 1 बूंद वीर्य (सीमन) 100 बूंद खून के बराबर है, इसलिए इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए।
सचाई यह है कि ऐसा न तो आयुर्वेद में लिखा है, न ही कामसूत्र में। वीर्य और खून का कोई रिश्ता ही नहीं है। वीर्य 24 घंटे बनता रहता है। आप नहीं निकालेंगे तो अपने आप निकल जाएगा। अगर आप भरे हुए गिलास में पानी डालते जाएंगे तो क्या होगा। ओवरफ्लो हो जाएगा। अगर आप सहवास नहीं करेंगे, मैस्टर्बेशन नहीं करेंगे तो स्वप्न मैथुन (वेट ड्रीम) के जरिए वीर्य निकल जाएगा।
ऐसा होने पर आदमी घबरा जाता है कि मेरी बहुत-सी ताकत बाहर निकल गई है और उसे वापस लाने के लिए मुझे पौष्टिक आहार लेने की जरूरत पड़ेगी। दरअसल, हम इसी वहम को लेकर बड़े हुए हैं कि 1 बूंद वीर्य बनने के लिए 100 बूंद खून की जरूरत पड़ती है और एक बूंद खून बनने के लिए ढेर सारा पौष्टिक भोजन चाहिए।
अनुपयोग से शिथिलता का डर
आप पेशाब को कितनी देर तक रोक कर रख सकते हैं? हद से हद एक दिन। इसी तरह वीर्य को भी अनिश्चित समय के लिए रोककर रखना मुमकिन नहीं है, चाहे कोई कितना भी संयम करे या योगी और संन्यासी हो। बहुत-से लोगों को लगता है कि सेक्स से दूर रहकर जिंदगी लंबी होती है, बदन हृष्ट-पुष्ट होता है और मानसिक-आध्यात्मिक विकास होता है।
यह हकीकत नहीं है। ब्रह्मचर्य धारण करने से कोई चमत्कार नहीं होता, बल्कि विकार होता है। लंबे समय तक कामेच्छाओं को दबाने से यानी सेक्स के परहेज से नपुंसकता आ सकती है।
चरक ने नामर्दगी के चार कारणों में से एक कारण इंद्रियों का उपयोग न करने को बताया है। मतलब, अनुपयोग से शिथिलता आ सकती है, उपयोग से नहीं। इतिहास पर नजर डालें, तो पता चलता है कि ज्यादातर ब्रह्मचारी या कुंवारे लोगों का इंतकाल जल्दी हुआ है। इनमें बड़े-बड़े लोगों के नाम भी शामिल हैं। जो शख्स नियमित रूप से कामेच्छाओं की पूर्ति करते रहते हैं, उनमें प्रोस्टेट की समस्या कम देखने को मिलती है। गृहस्थ में रहकर भी ब्रह्म की खोज यानी ब्रह्मचर्य पाया जा सकता है।
दूध, गाय का घी और मिश्री का सेवन करें
वीर्य के निकलने पर कमजोरी तो होती ही है? इसकी दो वजहें हैं। एक तो जब डिस्चार्ज होता है, तो शरीर के सारे स्नायु हरकत में आ जाते हैं। शरीर मथ जाता है। कई बार आदमी को कुछ देर के लिए थकान और कमजोरी महसूस हो सकती है, पर करीब आधे घंटे बाद ताजगी की तरंग का अहसास भी होने लगता है।
इस ताजगी को हमारा दिमाग मार देता है क्योंकि दिमाग में तो बैठा हुआ है, 1 बूंद वीर्य बराबर 100 बूंद खून। आदमी सोचने लगता है कि इसकी भरपाई करने में कितना समय लग जाएगा। जो ताजगी होती है, वह विषाद में बदल जाती है और आदमी काफी देर तक थकान महसूस करता रहता है।
शुरुआती दिनों में सभी में इस तरह की मायूसी रहती है। इसके लिए कुछ करने की जरूरत नहीं। अगर फिर भी किसी को कमजोरी लगती है, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, आयुर्वेद के मुताबिक यहां रसायन का सेवन कारगर हो सकता है। डिस्चार्ज के बाद कमजोरी महसूस करने वालों को अगले दिन रसायन ले लेना चाहिए। रसायन यानी वे चीजें, जो आदमी की जवानी बरकरार रखें। रसायन के रूप में मैं एक गिलास दूध, उसमें एक चम्मच गाय का घी और कुछ मिश्री का सेवन करने के लिए कहूंगा। चीनी नहीं, क्योंकि मिश्री पित्त शामक है।
एक ही दिन में ज्यादा बार सेक्स करके या ज्यादा बार मैस्टर्बेशन करके ज्यादा मात्रा में वीर्य निकालना तो नुकसानदायक होता होगा? इस पर डॉ. कोठारी ने कहा कि ज्यादा आप निकालेंगे कहां से? अगर होगा तभी न। थोड़ी-बहुत थकान या कमजोरी महसूस हो तो उसकी भरपाई आराम और ऊपर बताया रसायन लेने से फटाफट हो जाती है।
1 बूंद वीर्य, 100 बूंद खून के बराबर?
इंटरनैशनल खिलाड़ियों, खासकर ओलिंपियंस से कहा जाता है कि आप फाइनल मुकाबले से पहले सेक्स न करें, ऐसा क्यों? डॉ. कोठारी का कहना है कि यह बिल्कुल गलत है। मेरे एक दोस्त थे वार्डेल पोमरॉय, जाने-माने अमेरिकी सेक्सॉलजिस्ट। उन्होंने मुझे बताया कि वह ऐसे कई ओलिंपियंस को जानते हैं, जिन्होंने अहम मुकाबले के घंटा, दो घंटा पहले सहवास किया था, फिर भी उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था। कई क्रिकेटर भी मुझसे इस बारे में सवाल कर चुके हैं।
दिक्कत क्या है कि जो कोच बताता है, प्लेयर्स वही करते हैं और कोच को इस विषय की जानकारी नहीं होती। वह परंपरा के मुताबिक चलता जाता है। फिर 1 बूंद वीर्य 100 बूंद खून के बराबर, यह लाइन कहां से आई? उन्होंने कहा कि ऐसी मान्यता आज से नहीं, बल्कि पिछले 150 बरसों से चली आ रही है। सभी को अपनी दुकान चलानी होती है।
आप किसी तथाकथित सेक्सॉलजिस्ट के पास चले जाओ। उसका पहला सवाल यही होगा कि बचपन में खूब हाथ चलाया है क्या? वह इसी सवाल से आपको अपने वश में कर लेता है। वह इसी तरह की बातें करके आपको डरा देता है। फिर कुछ ऐसे राजनेता हैं जो कह गए, आप ब्रह्मचर्य का पालन करो।
ब्रह्मचर्य का सही अर्थ
प्राचीन ग्रंथों में जहां कहीं ब्रह्मचर्य का जिक्र है, वह इस अर्थ में है: वेदों आदि का अध्ययन करते हुए जीवन बिताना या ब्रह्म (परमात्मा) और मोक्ष पाने की साधना करना। ब्रह्मचर्य के यही दो अर्थ सही हैं। बाकी अर्थ लोगों ने नासमझी में या अपने फायदे के लिए बना लिए हैं। जिस समय ये ग्रंथ लिखे गए थे, उस दौरान 25 साल की उम्र तक लोग कुछ नहीं कर सकते थे। शरीर इसके लिए तैयार ही नहीं होता था।
लोग उस उम्र में वेद आदि की पढ़ाई में व्यस्त रहते थे। उस समय की सामाजिक रचना देखकर ये आश्रम बनाए गए थे। लेकिन सचाई यह भी है कि उस समय लोगों की शादियां 14-15 की उम्र में हो जाती थीं। सच यह भी कि तब लोगों को सेक्स एजुकेशन की जरूरत नहीं थी, लेकिन अभी है।
आज लोगों की शादियां 25 से 30 साल की उम्र में होती हैं। मतलब वह काल 15, 20 साल बढ़ गया है लेकिन अंकुश के नियम आप वही रख रहे हैं, जो तब थे। मतलब, डेटिंग मत करना, किसी को हाथ मत लगाने देना, ये मत करना, वो मत करना। यह कुछ दिन, कुछ हफ्ते, कुछ महीने के लिए मुमकिन तो है लेकिन बरसों तक इन नियमों को सख्ती से पालन करना नामुमकिन है, खासकर एक सामान्य आदमी के लिए।
डॉ. कोठारी के मुताबिक, इसका हल यह है कि किशोरों और युवाओं पर अंकुश न लगाएं। इसके साथ ही उन्हें सेक्स एजुकेशन जरूर दें। सेक्स एजुकेशन का मतलब यह नहीं कि उन्हें हमें वह चीज सिखाना है, जो वे नहीं जानते, बल्कि हमें उन्हें जिम्मेदारी से भरा बर्ताव करना सिखाना है, जिसके वे आदी नहीं हैं।
मकसद यह कि वे बहकें नहीं, अवांछित गर्भ से बच सकें, एड्स या दूसरे यौन रोगों के शिकार न हों। इसके लिए जरूरी एहतियात बरतें। उन्हें अपने कार्यकलाप के नतीजों की जानकारी हो। साथ ही सेक्स से जुड़ी गलत धारणाओं से भी छुटकारा दिलाने की जरूरत है। सेक्स एजुकेशन 9-10 साल की उम्र से शुरू कर देनी चाहिए। सही स्पर्श, गलत स्पर्श के बारे में तो बच्चों को और भी पहले बताना चाहिए ताकि उनका यौन शोषण न हो।
क्या आपने आयुर्वेद में भी ट्रेनिंग ली है? इस पर उन्होंने कहा कि मेरे पास आयुर्वेद की कोई डिग्री नहीं है, लेकिन मुझे कई बड़े-बड़े आयुर्वेदाचार्यों से मिलने और उनसे सीखने का मौका मिला है। मैंने खुद भी इसका काफी अध्ययन किया है। इसके बावजूद मैं कोई आयुर्वेदिक औषधि नहीं बताता।
मैं तो आयुर्वेद के आधारभूत नियम अपनाने की सलाह देता हूं। आंवला, हरड़, लहसुन, मिश्री आदि के सेवन की बात कहता हूं, जिसे समझने में किसी को भी दिक्कत नहीं आती। ये चीजें हर जगह उपलब्ध भी रहती हैं। मैंने मॉडर्न मेडिकल सिस्टम के एक टॉपिक में पीएच-डी की है। बाद में मालूम पड़ा कि हम ज्यादातर लक्षणों का इलाज करते हैं, बीमारी की जड़ में नहीं जाते।
फिर मैंने आयुर्वेद पढ़ना शुरू किया और जाना कि यह तो बहुत अच्छी चीज है। यहां तक कि मैंने अपने बेटे को कहा कि तुम आयुर्वेद में जाओ। यह सच्चा विज्ञान है। आयुर्वेद ही एकमात्र विज्ञान है जिसमें कहा गया है कि अन्न ही औषधि है।
मतलब, हमारा भोजन ही दवा है। यानी पहले आप आहार से इलाज करो, फिर विहार से। अगर इससे आराम न आए तो फिर आखिर में दवा का सहारा लें। विहार मतलब कसरत, दिनचर्या वगैरह। जैसे कि खाना आप चबाकर खाएं। कितना खाते हैं, किस तरह खाते हैं, यह अहम है। पेट अग्नि की माफिक है। मतलब, आप खा रहे हैं तो हवन कर रहे हैं। उसमें बार-बार न डालें। एक बार खा लिया तो तीन-चार घंटे तक न खाएं। इससे आपका हाजमा ठीक रहेगा।
दिनचर्या के बारे में जो आयुर्वेद ने लिखा है, वह आप कहीं नहीं पाएंगे। मिसाल के तौर पर आयुर्वेद में कहा गया है कि सुबह उठने के फौरन बाद आप दो गिलास पानी पी लें। ज्यादा नहीं। लोग गुनगुना पानी पी लेते हैं, लेकिन आयुर्वेद में कहा गया है कि आप सामान्य पानी लें या मटके का पानी। इससे आपका पेट बिल्कुल साफ रहेगा।
इसके बाद आप ब्रश या दातुन करके मुंह के अंदर तिल का तेल भर डालें। इसे अंदर निगलना नहीं है। होंठ कसकर बंद करके तेल को मुंह के अंदर घुमाएं। इसे बस 5 मिनट करना है। फिर इस तेल को बाहर फेंक दें। इससे आपके दांत मजबूत रहेंगे और गला हमेशा साफ रहेगा। आवाज अच्छी रहेगी। मसूड़े स्वस्थ रहेंगे। इससे दांत की कोई बीमारी नहीं होगी।
‘प्राइवेट पार्ट की मालिश भी नीचे से ऊपर की तरफ करें’
एक चीज और, आप जब भी हाथ से मुंह धोते हैं, तो ऊपर से नीचे धोते हैं। ऐसा न करें। आप नीचे से ऊपर की ओर धोएं। इससे आपको झुर्रियां नहीं पड़ेंगी। मॉडल्स यही करती हैं। इस क्रिया में आप खून को नीचे से ऊपर की ओर ले जाते हो। आप कहीं भी मालिश करवा लो, चाहे वह स्पा हो या बड़े से बड़ा होटल।
कहीं भी आयुर्वेद के अनुसार नहीं करते। आयुर्वेद में हमेशा कहा गया है कि मालिश दिल की दिशा में होनी चाहिए। मतलब अंगुलियों से ऊपर की ओर। अपना शरीर भी तौलिए से दिल की तरफ ही पोंछना चाहिए क्योंकि खून की गति हमेशा दिल की तरफ होती है। पैर की मालिश करनी है तो वह भी ऊपर की ओर।
अगर प्राइवेट पार्ट में करनी हो तो वह हमेशा नीचे की ओर करनी चाहिए यानी जड़ से शुरू करना चाहिए। पेट सही रखना है तो खूब चबाकर खाएं। पेट के दांत नहीं हैं। आप जितना फटाफट खाएंगे, पेट को उतनी तकलीफ होगी। हाजमा बराबर नहीं होगा। और जब पेट साफ नहीं होगा तो समझ लें, कुछ भी साफ नहीं होगा।
कब्ज हर बीमारी की जड़ होती है। हमारे यहां लोग विदेशियों को फॉलो करते हैं जो बिल्कुल गलत है। खाने में मिठाई सबसे पहले खाओ। हमारे यहां गांवों में पहले लड्डू खिलाते थे, फिर खाना खिलाते थे क्योंकि उस समय पेट के सारे अवयव काफी मजबूत रहते हैं। पचाने की क्षमता काफी मजबूत रहती है। खाने के समय और उससे आधे घंटे पहले, पानी बिलकुल न पिएं। खाने के डेढ़ घंटे बाद पानी पिएं।
वीर्य और खून का कोई रिश्ता नहीं
आप जिस आयुर्वेद की इतनी बातें कर रहे हैं, वही तो ब्रह्मचर्य अपनाने को भी कहता है? इस पर डॉ. कोठारी ने कहा, ‘अपने यहां सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि लोगों को जो बता दिया जाता है, उसको फॉलो करने लगते हैं। इसकी वजह यह है कि हम लोग काफी भावुक हैं। जिन महापुरुषों की इज्जत हम कुछ खास कारणों से करते हैं, उनकी कही हर बात हम सही मानने लगते हैं। जैसे कि महात्मा गांधी और मोरारजी देसाई ने भी ब्रह्मचर्य अपनाने की बात कही है।
उन्होंने अपने अनुभव से यह बोल दिया, लेकिन वे सेक्सॉलजिस्ट नहीं थे। इसलिए लोगों को इसे नहीं मानना चाहिए।’ उन्होंने किस आधार पर लोगों को यह राय दी। ब्रह्मचर्य का मतलब जो आम आदमी निकालता है, वह यह कि सेक्स नहीं करना, सेक्सुअल गतिविधि से दूर रहना और वीर्य न निकलने देना। लोग ऐसा मानते हैं कि 1 बूंद वीर्य (सीमन) 100 बूंद खून के बराबर है, इसलिए इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए।
सचाई यह है कि ऐसा न तो आयुर्वेद में लिखा है, न ही कामसूत्र में। वीर्य और खून का कोई रिश्ता ही नहीं है। वीर्य 24 घंटे बनता रहता है। आप नहीं निकालेंगे तो अपने आप निकल जाएगा। अगर आप भरे हुए गिलास में पानी डालते जाएंगे तो क्या होगा। ओवरफ्लो हो जाएगा। अगर आप सहवास नहीं करेंगे, मैस्टर्बेशन नहीं करेंगे तो स्वप्न मैथुन (वेट ड्रीम) के जरिए वीर्य निकल जाएगा।
ऐसा होने पर आदमी घबरा जाता है कि मेरी बहुत-सी ताकत बाहर निकल गई है और उसे वापस लाने के लिए मुझे पौष्टिक आहार लेने की जरूरत पड़ेगी। दरअसल, हम इसी वहम को लेकर बड़े हुए हैं कि 1 बूंद वीर्य बनने के लिए 100 बूंद खून की जरूरत पड़ती है और एक बूंद खून बनने के लिए ढेर सारा पौष्टिक भोजन चाहिए।
अनुपयोग से शिथिलता का डर
आप पेशाब को कितनी देर तक रोक कर रख सकते हैं? हद से हद एक दिन। इसी तरह वीर्य को भी अनिश्चित समय के लिए रोककर रखना मुमकिन नहीं है, चाहे कोई कितना भी संयम करे या योगी और संन्यासी हो। बहुत-से लोगों को लगता है कि सेक्स से दूर रहकर जिंदगी लंबी होती है, बदन हृष्ट-पुष्ट होता है और मानसिक-आध्यात्मिक विकास होता है।
यह हकीकत नहीं है। ब्रह्मचर्य धारण करने से कोई चमत्कार नहीं होता, बल्कि विकार होता है। लंबे समय तक कामेच्छाओं को दबाने से यानी सेक्स के परहेज से नपुंसकता आ सकती है।
चरक ने नामर्दगी के चार कारणों में से एक कारण इंद्रियों का उपयोग न करने को बताया है। मतलब, अनुपयोग से शिथिलता आ सकती है, उपयोग से नहीं। इतिहास पर नजर डालें, तो पता चलता है कि ज्यादातर ब्रह्मचारी या कुंवारे लोगों का इंतकाल जल्दी हुआ है। इनमें बड़े-बड़े लोगों के नाम भी शामिल हैं। जो शख्स नियमित रूप से कामेच्छाओं की पूर्ति करते रहते हैं, उनमें प्रोस्टेट की समस्या कम देखने को मिलती है। गृहस्थ में रहकर भी ब्रह्म की खोज यानी ब्रह्मचर्य पाया जा सकता है।
दूध, गाय का घी और मिश्री का सेवन करें
वीर्य के निकलने पर कमजोरी तो होती ही है? इसकी दो वजहें हैं। एक तो जब डिस्चार्ज होता है, तो शरीर के सारे स्नायु हरकत में आ जाते हैं। शरीर मथ जाता है। कई बार आदमी को कुछ देर के लिए थकान और कमजोरी महसूस हो सकती है, पर करीब आधे घंटे बाद ताजगी की तरंग का अहसास भी होने लगता है।
इस ताजगी को हमारा दिमाग मार देता है क्योंकि दिमाग में तो बैठा हुआ है, 1 बूंद वीर्य बराबर 100 बूंद खून। आदमी सोचने लगता है कि इसकी भरपाई करने में कितना समय लग जाएगा। जो ताजगी होती है, वह विषाद में बदल जाती है और आदमी काफी देर तक थकान महसूस करता रहता है।
शुरुआती दिनों में सभी में इस तरह की मायूसी रहती है। इसके लिए कुछ करने की जरूरत नहीं। अगर फिर भी किसी को कमजोरी लगती है, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, आयुर्वेद के मुताबिक यहां रसायन का सेवन कारगर हो सकता है। डिस्चार्ज के बाद कमजोरी महसूस करने वालों को अगले दिन रसायन ले लेना चाहिए। रसायन यानी वे चीजें, जो आदमी की जवानी बरकरार रखें। रसायन के रूप में मैं एक गिलास दूध, उसमें एक चम्मच गाय का घी और कुछ मिश्री का सेवन करने के लिए कहूंगा। चीनी नहीं, क्योंकि मिश्री पित्त शामक है।
एक ही दिन में ज्यादा बार सेक्स करके या ज्यादा बार मैस्टर्बेशन करके ज्यादा मात्रा में वीर्य निकालना तो नुकसानदायक होता होगा? इस पर डॉ. कोठारी ने कहा कि ज्यादा आप निकालेंगे कहां से? अगर होगा तभी न। थोड़ी-बहुत थकान या कमजोरी महसूस हो तो उसकी भरपाई आराम और ऊपर बताया रसायन लेने से फटाफट हो जाती है।
1 बूंद वीर्य, 100 बूंद खून के बराबर?
इंटरनैशनल खिलाड़ियों, खासकर ओलिंपियंस से कहा जाता है कि आप फाइनल मुकाबले से पहले सेक्स न करें, ऐसा क्यों? डॉ. कोठारी का कहना है कि यह बिल्कुल गलत है। मेरे एक दोस्त थे वार्डेल पोमरॉय, जाने-माने अमेरिकी सेक्सॉलजिस्ट। उन्होंने मुझे बताया कि वह ऐसे कई ओलिंपियंस को जानते हैं, जिन्होंने अहम मुकाबले के घंटा, दो घंटा पहले सहवास किया था, फिर भी उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था। कई क्रिकेटर भी मुझसे इस बारे में सवाल कर चुके हैं।
दिक्कत क्या है कि जो कोच बताता है, प्लेयर्स वही करते हैं और कोच को इस विषय की जानकारी नहीं होती। वह परंपरा के मुताबिक चलता जाता है। फिर 1 बूंद वीर्य 100 बूंद खून के बराबर, यह लाइन कहां से आई? उन्होंने कहा कि ऐसी मान्यता आज से नहीं, बल्कि पिछले 150 बरसों से चली आ रही है। सभी को अपनी दुकान चलानी होती है।
आप किसी तथाकथित सेक्सॉलजिस्ट के पास चले जाओ। उसका पहला सवाल यही होगा कि बचपन में खूब हाथ चलाया है क्या? वह इसी सवाल से आपको अपने वश में कर लेता है। वह इसी तरह की बातें करके आपको डरा देता है। फिर कुछ ऐसे राजनेता हैं जो कह गए, आप ब्रह्मचर्य का पालन करो।
ब्रह्मचर्य का सही अर्थ
प्राचीन ग्रंथों में जहां कहीं ब्रह्मचर्य का जिक्र है, वह इस अर्थ में है: वेदों आदि का अध्ययन करते हुए जीवन बिताना या ब्रह्म (परमात्मा) और मोक्ष पाने की साधना करना। ब्रह्मचर्य के यही दो अर्थ सही हैं। बाकी अर्थ लोगों ने नासमझी में या अपने फायदे के लिए बना लिए हैं। जिस समय ये ग्रंथ लिखे गए थे, उस दौरान 25 साल की उम्र तक लोग कुछ नहीं कर सकते थे। शरीर इसके लिए तैयार ही नहीं होता था।
लोग उस उम्र में वेद आदि की पढ़ाई में व्यस्त रहते थे। उस समय की सामाजिक रचना देखकर ये आश्रम बनाए गए थे। लेकिन सचाई यह भी है कि उस समय लोगों की शादियां 14-15 की उम्र में हो जाती थीं। सच यह भी कि तब लोगों को सेक्स एजुकेशन की जरूरत नहीं थी, लेकिन अभी है।
आज लोगों की शादियां 25 से 30 साल की उम्र में होती हैं। मतलब वह काल 15, 20 साल बढ़ गया है लेकिन अंकुश के नियम आप वही रख रहे हैं, जो तब थे। मतलब, डेटिंग मत करना, किसी को हाथ मत लगाने देना, ये मत करना, वो मत करना। यह कुछ दिन, कुछ हफ्ते, कुछ महीने के लिए मुमकिन तो है लेकिन बरसों तक इन नियमों को सख्ती से पालन करना नामुमकिन है, खासकर एक सामान्य आदमी के लिए।
डॉ. कोठारी के मुताबिक, इसका हल यह है कि किशोरों और युवाओं पर अंकुश न लगाएं। इसके साथ ही उन्हें सेक्स एजुकेशन जरूर दें। सेक्स एजुकेशन का मतलब यह नहीं कि उन्हें हमें वह चीज सिखाना है, जो वे नहीं जानते, बल्कि हमें उन्हें जिम्मेदारी से भरा बर्ताव करना सिखाना है, जिसके वे आदी नहीं हैं।
मकसद यह कि वे बहकें नहीं, अवांछित गर्भ से बच सकें, एड्स या दूसरे यौन रोगों के शिकार न हों। इसके लिए जरूरी एहतियात बरतें। उन्हें अपने कार्यकलाप के नतीजों की जानकारी हो। साथ ही सेक्स से जुड़ी गलत धारणाओं से भी छुटकारा दिलाने की जरूरत है। सेक्स एजुकेशन 9-10 साल की उम्र से शुरू कर देनी चाहिए। सही स्पर्श, गलत स्पर्श के बारे में तो बच्चों को और भी पहले बताना चाहिए ताकि उनका यौन शोषण न हो।
कभी-कभार पोर्न देखने में हर्ज नहीं
पोर्न पर सही नजरिया क्या है? उन्होंने बताया कि पोर्न उत्तेजना बढ़ाने में मददगार है वरना दुधारी तलवार है। अगर सेक्स एजुकेशन न हो, तो लोग पोर्न में परफेक्ट बॉडी वाली मॉडल्स देखकर अपनी पार्टनर से वैसी अपेक्षा कर बैठते हैं। बड़े-बड़े प्राइवेट पार्ट को देखकर खुद आदमी में हीन भावना आ सकती है। लेकिन अगर उसे सेक्स एजुकेशन मिली है, तो उसे मालूम है कि साइज 2 इंच या उससे ज्यादा है, तो काफी है। तब वह पोर्न को निर्दोष सेक्स टॉनिक की तरह इस्तेमाल कर पाएगा।
वैसे, उत्तेजना के लिए पोर्न जरूरी नहीं है। कल्पना से भी काम ले सकते हैं। कभी-कभार देख लिया, तो नुकसान नहीं। जब पोर्न देखे बिना रहा न जाए, इंसान पढ़ने या काम-धंधे पर न जाए, फैमिली के साथ वक्त न बिताए, शादीशुदा जिंदगी पर पोर्न हावी हो जाए, तो ये मानसिक बीमारी के लक्षण हैं। ऐसा शख्स कई बार रेप जैसा अपराध कर बैठता है।
इसलिए वक्त रहते मनोचिकित्सक से उसका इलाज करवाना चाहिए। बच्चों का भी पोर्न देखना ठीक नहीं। वे देखें, इससे पहले उन्हें सेक्स एजुकेशन दे देनी चाहिए। उन्हें समझाना होगा कि पोर्न में दिखाए जा रहे शरीरों, तरीकों और समय की तुलना अपनी असल जिंदगी से न करें। वहां दिखाए जा रहे सीन अक्सर बनावटी होते हैं। इसलिए अपने शरीर को लेकर कॉम्प्लेक्स न पालें।
शादी से बाहर सहवास
कई लोगों की आजकल धारणा बन गई है कि शादी से बाहर संबंध बनाने में कोई बुराई नहीं? डॉ. कोठारी ने कहा कि शादी से बाहर सहवास करना चाहिए या नहीं, यह कई बातों पर निर्भर करता है, जिसमें हर बात की जांच बहुत सावधानी से करके एक जिम्मेदारी भरा फैसला लेने की जरूरत है। ऐसे मामलों में अक्सर शारीरिक वेग सामाजिक वर्जनाओं पर हावी हो जाता है।
कई बार जो बात एक शख्स के लिए सही होती है, दूसरे के लिए वही बात गलत साबित हो सकती है। ऐसे फैसले लेने से पहले इंसान को खुद को तीन पॉइंट्स पर टटोलना चाहिए। ये तीन पॉइंट्स हैं - 3 R - राइट (हक), रिस्पॉन्सबिलिटी (जिम्मेदारी) और रिस्पेक्ट (मान-सम्मान)।
राइट यानी अधिकार का मतलब है कि मुझे किसी भी शख्स के साथ संबंध बनाने या न बनाने का पूरा हक है। किसी से भी और कहीं भी मुझे हां या ना कहने का हक है, लेकिन अधिकार के साथ दायित्व भी जुड़ा होता है। किसी अनजान शख्स से असुरक्षित (बिना कॉन्डॉम) संबंध बनाना खतरे से खाली नहीं। इससे अनचाहा गर्भ हो सकता है। मैं एड्स या दूसरे यौन रोगों का मरीज बन सकता हूं। सेफ्टी बरत लूं, तो भी इस बाहर के संबंध को समाज स्वीकार नहीं करेगा और बदनामी हो जाएगी।
आजकल धोखे और ब्लैकमेलिंग भी खूब होती है। क्या मैं इन सबके लिए तैयार हूं? तीसरी चीज है मान-सम्मान। इसके तहत मुझे इन सब गतिविधियों में अपना सम्मान बनाए रखना आना चाहिए। साथ ही दूसरों के (जीवनसाथी के भी) हक और जिम्मेदारियों का भी आदर करना चाहिए। ये तीनों पॉइंट्स इंसान को दिशा दे सकते हैं। अगर इन्हें दिमाग में रखकर, सोच-समझकर फैसला लेंगे तो आप हमेशा सही, जिम्मेदार और सम्मानजनक स्थिति में रहेंगे।
पोर्न पर सही नजरिया क्या है? उन्होंने बताया कि पोर्न उत्तेजना बढ़ाने में मददगार है वरना दुधारी तलवार है। अगर सेक्स एजुकेशन न हो, तो लोग पोर्न में परफेक्ट बॉडी वाली मॉडल्स देखकर अपनी पार्टनर से वैसी अपेक्षा कर बैठते हैं। बड़े-बड़े प्राइवेट पार्ट को देखकर खुद आदमी में हीन भावना आ सकती है। लेकिन अगर उसे सेक्स एजुकेशन मिली है, तो उसे मालूम है कि साइज 2 इंच या उससे ज्यादा है, तो काफी है। तब वह पोर्न को निर्दोष सेक्स टॉनिक की तरह इस्तेमाल कर पाएगा।
वैसे, उत्तेजना के लिए पोर्न जरूरी नहीं है। कल्पना से भी काम ले सकते हैं। कभी-कभार देख लिया, तो नुकसान नहीं। जब पोर्न देखे बिना रहा न जाए, इंसान पढ़ने या काम-धंधे पर न जाए, फैमिली के साथ वक्त न बिताए, शादीशुदा जिंदगी पर पोर्न हावी हो जाए, तो ये मानसिक बीमारी के लक्षण हैं। ऐसा शख्स कई बार रेप जैसा अपराध कर बैठता है।
इसलिए वक्त रहते मनोचिकित्सक से उसका इलाज करवाना चाहिए। बच्चों का भी पोर्न देखना ठीक नहीं। वे देखें, इससे पहले उन्हें सेक्स एजुकेशन दे देनी चाहिए। उन्हें समझाना होगा कि पोर्न में दिखाए जा रहे शरीरों, तरीकों और समय की तुलना अपनी असल जिंदगी से न करें। वहां दिखाए जा रहे सीन अक्सर बनावटी होते हैं। इसलिए अपने शरीर को लेकर कॉम्प्लेक्स न पालें।
शादी से बाहर सहवास
कई लोगों की आजकल धारणा बन गई है कि शादी से बाहर संबंध बनाने में कोई बुराई नहीं? डॉ. कोठारी ने कहा कि शादी से बाहर सहवास करना चाहिए या नहीं, यह कई बातों पर निर्भर करता है, जिसमें हर बात की जांच बहुत सावधानी से करके एक जिम्मेदारी भरा फैसला लेने की जरूरत है। ऐसे मामलों में अक्सर शारीरिक वेग सामाजिक वर्जनाओं पर हावी हो जाता है।
कई बार जो बात एक शख्स के लिए सही होती है, दूसरे के लिए वही बात गलत साबित हो सकती है। ऐसे फैसले लेने से पहले इंसान को खुद को तीन पॉइंट्स पर टटोलना चाहिए। ये तीन पॉइंट्स हैं - 3 R - राइट (हक), रिस्पॉन्सबिलिटी (जिम्मेदारी) और रिस्पेक्ट (मान-सम्मान)।
राइट यानी अधिकार का मतलब है कि मुझे किसी भी शख्स के साथ संबंध बनाने या न बनाने का पूरा हक है। किसी से भी और कहीं भी मुझे हां या ना कहने का हक है, लेकिन अधिकार के साथ दायित्व भी जुड़ा होता है। किसी अनजान शख्स से असुरक्षित (बिना कॉन्डॉम) संबंध बनाना खतरे से खाली नहीं। इससे अनचाहा गर्भ हो सकता है। मैं एड्स या दूसरे यौन रोगों का मरीज बन सकता हूं। सेफ्टी बरत लूं, तो भी इस बाहर के संबंध को समाज स्वीकार नहीं करेगा और बदनामी हो जाएगी।
आजकल धोखे और ब्लैकमेलिंग भी खूब होती है। क्या मैं इन सबके लिए तैयार हूं? तीसरी चीज है मान-सम्मान। इसके तहत मुझे इन सब गतिविधियों में अपना सम्मान बनाए रखना आना चाहिए। साथ ही दूसरों के (जीवनसाथी के भी) हक और जिम्मेदारियों का भी आदर करना चाहिए। ये तीनों पॉइंट्स इंसान को दिशा दे सकते हैं। अगर इन्हें दिमाग में रखकर, सोच-समझकर फैसला लेंगे तो आप हमेशा सही, जिम्मेदार और सम्मानजनक स्थिति में रहेंगे।
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